भरोसा, तबाही, पलायन और IS… तालिबान के लिए आसान नहीं होगा अफगान पर राज करना!

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तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया है। अब उसे अफगानिस्तान पर शासन करना है। यहां राज करना उतना आसान भी नहीं है। कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़े तालिबान के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। आइए एक नजर डालते हैं तालिबन की कुछ प्रमुख चुनौतियों से जो उनका इंतजार कर रही हैं।

भरोसा की कमी: अफ़गानों के बीच तालिबान के बारे भरोसे की कमी है। पिछली बार जब 1996 से 2001 तक तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में था, तो उसने इस्लामी कानून की कठोर व्याख्या की थी। उसने महिलाओं के शिक्षा और सार्वजनिक स्थानों पर घूमने प्रतिबंध लगा दिया था। राजनीतिक विरोधियों को बेरहमी से मार डाला और हज़ारों धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों का नरसंहार किया। तालिबान ने इस बार महिलाओं के अधिकारों सहित एक नरम व्यवस्था का वादा किया है। उसने एक समावेशी सरकार का भी वादा किया है, जिसमें पूर्व अमेरिकी समर्थित राष्ट्रपति हामिद करजई सहित अफगान राजनीति में विभिन्न प्रकार के मूवर्स और शेकर्स के साथ बातचीत की गई है। तालिबान ने शिया हजारा अल्पसंख्यक के प्रतिनिधियों को भी भेजा है, जिन्हें 1990 के दशक में तालिबान के हाथों क्रूर हिंसा का सामना करना पड़ा था।

 

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