प्रतापगढ़ : धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो। आज इस उदघोष बिना सनातन मतावलंबियों का कोई अनुष्ठान पूरा नहीं होता। नई पीढ़ी में ज्यादातर लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि इस उद्घोष की रचना प्रतापगढ़ की माटी से निकले महान संत स्वामी करपात्री जी महाराज ने की थी। मंगलवार 10 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि है और उनके अनुयायी इस दिन उनका भावपूर्ण स्मरण करेंगे।
प्रतापगढ़ की पहचान करपात्री जी से भी है। लालगंज तहसील के भटनी ग्राम में श्रावण शुक्ल द्वितीया संवत 1964, (10अगस्त 1907) को उनका जन्म हुआ था। राम निधि ओझा व मां शिवरानी की संतान का नाम रखा गया हरिनारायण। नौ वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ था परंतु 19 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग दिया। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ली। फिर हरिहरानंद सरस्वती कहलाए परंतु दुनिया में जाने गए स्वामी करपात्री महाराज के नाम से। दरअसल अंजुरी में जितना भोजन प्रसाद स्वरूप आता था, वह उतना ही ग्रहण करते थे। देश की आजादी की लड़ाई में जेल गए। देश स्वतंत्र होने पर 1948 में अखिल भारतीय रामराज्य परिषद दल बनाया। प्रवचनों के जरिए सनातन मत का प्रचार प्रसार किया। माघ मेले और कुंभ में उनके प्रवचन सुनने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ते थे। वह सच्चे गोसेवक भी थे। गोवध के विरोध में उनके नेतृत्व में संतों ने नवंबर 1966 को संसद के सामने ऐतिहासिक धरना दिया था। निहत्थे संतों पर गोली चलाई गई। बाद में तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने त्यागपत्र दे दिया था। मुंबई में हुए एक शास्त्रार्थ में उन्हें धर्मसम्राट की उपाधि मिली थी। परिवार से जुड़े शिवराम ओझा कहते हैं कि स्वामी जी हमेशा यही कहते थे कि स्वतंत्र विधान, स्वतंत्र संस्कृति, स्वतंत्र भाषा और स्वतंत्र परंपरा में ही सब काम होना ही देश की स्वतंत्रता की पहचान है।
संवरने की प्रतीक्षा में भटनी धाम
स्वामी करपात्री की जन्मस्थली को संवारे जाने की प्रतीक्षा अर्से से है। वैसे तो करपात्री धाम बनाकर स्वजन व शिष्य ने उनकी प्रतिमा लगाई है पर वह चाहते हैं कि शासन इसे धार्मिक पर्यटन के साथ शोध का केंद्र के रूप में विकसित करने में मदद करे। हाल ही में धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडेय, अनिरुद्ध रामानुजदास ने करपात्री महाराज के लिए मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग उठाई है। सांसद संगम लाल गुप्ता इसे प्रधानमंत्री तक भी पहुंचा चुके हैं।
रचित मुख्य पुस्तकें
धर्ममय समाज के लिए करपात्री जी ने कई पुस्तकें लिखीं थीं। इनमें प्रमुख हैं भक्ति सुधा, भगवत तत्व, वर्णाश्रम धर्म और संकीर्तन मीमांसा, वेद का स्वरूप और प्रामाण्य, आधुनिक राजनीति, अहमर्थ और परमार्थ सार, वेद स्वरूप विमर्श ,रामायण मीमांसा, वेदार्थ चितामणि, वेदार्थ पारिजात, पूंजीवाद समाजवाद एवं रामराज, रामराज और मार्क्सवाद, विचार पीयूष।