हिमालय दिवस 2021: हिमालय के संरक्षण के लिए मुद्दों पर बात शुरू हुई, परिणाम आने बाकी

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इस बार मुख्य आयोजन 9 सितंबर को नई दिल्ली स्थित दिल्ली यूनिवर्सिटी में होगा। जिसमें कई केंद्रीय मंत्रियों समेत नीति आयोग के उपाध्यक्ष भी प्रतिभाग करेंगे। उत्तराखंड में भी सरकार और निजी संस्थाओं की ओर से आयोजन की तैयारी की रही है।

हिमालय के संरक्षण के लिए उत्तराखंड में 10 साल पहले शुरू हुई मुहिम 11वें वर्ष में प्रवेश कर गई है। जिन उद्देश्यों को लेकर इस मुहिम को शुरू किया गया था, उसके परिणाम व्यापक रूप से अभी सामने आने बाकी हैं, लेकिन फिर भी कोशिशें जारी हैं। इस वर्ष भी हिमालय दिवस को व्यापक रूप से मनाने की तैयारी है। नई दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे ताकि हिमालय के मुुद्दों पर देश-दुनिया में सिर्फ बातचीत ही न हो, बल्कि इसके सार्थक परिणाम भी सामने आएं।

इस बार मुख्य आयोजन 9 सितंबर को नई दिल्ली स्थित दिल्ली यूनिवर्सिटी में होगा। जिसमें कई केंद्रीय मंत्रियों समेत नीति आयोग के उपाध्यक्ष भी प्रतिभाग करेंगे। उत्तराखंड में भी सरकार और निजी संस्थाओं की ओर से आयोजन की तैयारी की रही है। आयोजन से पूर्व दिल्ली पहुंचे हेस्को के संस्थापक और पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि हिमालय दिवस सिर्फ एक दिन मानाया जाने वाला पर्व नहीं है। 9 सितंबर को हम इसे व्यापक रूप से मनाते हैं, लेकिन यह भी सच है कि हिमालय को हम रोज जीते हैं।

दिल्ली में होने वाले आयोजन में इस बार हिमालय संरक्षण के मुद्दों के साथ इस बात पर भी चिंतन किया जाएगा कि कैसे लोग होली-दीपावली और अन्य दूसरे पर्वों की तरह हिमालय दिवस को भी मनाएं। यह जिम्मेदारी सिर्फ हिमालयी राज्यों की नहीं है। हिमालयी राज्य हिमालय को पालते हैं और दूसरे लोग इसे भोगते हैं। हिमालय सबका है। इसे बचाने के लिए हर किसी को सामने आना होगा। इस बार हिमालय दिवस पर यही संदेश देने की कोशिश की जाएगी। हिमालय के सामने आज उठ खड़ा हुआ संकट किसी से छुुपा नहीं है। जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय का स्वभाव बदल रहा है। जो पूरे विश्व के लिए घातक है।

डॉ. जोशी ने बताया कि अब तक के केवल जीईपी अर्थात (सकल पर्यावरण उत्पाद) की ही बात की जाती रही है। इस बार हिमालय दिवस पर हम जीईपी (सकल पर्यावरण उत्पाद) का मुद्दा भी उठाएंगे। हम चाहते हैं कि सरकारी, गैर सरकारी विभाग और संस्थाएं प्रतिवर्ष जलवायु बजट (क्लाइमेंट बजटिंग) की व्यवस्था करें। उत्तराखंड में इस मुद्दे पर पहल की गई है, लेकिन यह अभी सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। इसे भी और व्यापक रूप दिए जाने की जरूरत है। कोरोना के इस दौर में लोगों को पर्यावरण का महत्व समझ में आया है। पर्यावरण और हिमालय दोनों ही एक-दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए इन मुद्दों पर बातचीत जरूरी है।

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