गुस्ताखी के लिए मंत्रीजी का पहनावा तो जिम्मेदार नहीं!

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मनोज तिवारी, भोपाल। पहली बार प्रभार के जिले में पहुंचे एक मंत्री को अव्यवस्था का सामना करना पड़ा। उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी और प्रशासन के लोग दौड़े-दौड़े आएंगे और ऐतिहासिक सम्मान होगा, पर सब सूना-सूना रहा। फिर नाराजगी तो बनती है, जो दिखाई भी दी। अब सवाल उठता है कि ऐसा हुआ क्यों? पहली गफलत तो फर्स्ट और थर्ड क्लास रिजर्वेशन को लेकर थी। लोग अंदाज नहीं लगा पाए कि चार्टर प्लेन से आने वाले मंत्री थर्ड क्लास से उतरेंगे और रही-सही कसर उनके पहनावे ने पूरी कर दी। नेता या मंत्री का पहनावा उनकी पहचान होता है। आमतौर पर वे सफेद कुर्ता-पायजामा पहनते हैं। मंत्री के इंतजार में खड़े लोगों के दिमाग में भी यही छवि बनी हुई थी। वे ट्रेन से उतरने वाले हर शख्स में कुर्ता और पायजामा पहनने वाले को तलाश रहे थे। उन्हें अंदाज ही नहीं था कि किसी मंत्री का लिबास रंगीन भी हो सकता है।

ड़े साहब मैदान मार ले गए
राजधानी में इन दिनों एक अधिकारी की पदोन्नति चर्चा में है और कारण लंबा इंतजार है। दरअसल, ये अधिकारी उसी पद पर पदोन्‍नति चाह रहे थे, जो हाल ही में खाली हुआ था, पर एक अन्य अधिकारी (बड़े साहब) उस पद पर पहले से नजरें जमाए थे। पसंद की कुर्सी की प्रतिस्पर्धा में आखिर बड़े साहब जीत गए, पर छोटे साहब को निराश होना पड़ा। मामला प्रदेश की आबोहवा से जुड़े विभाग का है। इस मामले में छोटे साहब को ज्यादा नुकसान तो नहीं हुआ, पर वे तनाव के दौर से गुजरे। दरअसल, एक कुर्सी के दो दावेदार होने के कारण उन्हें करीब 20 दिन पदोन्‍नति का इंतजार करना पड़ा। व्यवहार से मृदुल और हर झंझट से दूर रहने वाले इन साहब को पहले ही बोल दिया जाता कि जिस पद की वे आस लगाए बैठे हैं, वह दूसरे को मिलेगा, तब भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती। पर 20 दिन अखर गए।

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