Egas Festival 2022: सीएम धामी ने ईगास-बग्वाल पर की अवकाश की घोषणा, पहाड़ी बोली भाषा में दिया ये संदेश..

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  • सीएम पुष्कर सिंह धामी ने ईगास-बग्वाल को अवकाश की घोषणा की
  • नई पीढ़ी हमारी लोक संस्कृति और पारम्परिक त्योहारों से जुङी रहे: सीएम

Egas Festival: उत्तराखण्ड के लोकपर्व ईगास-बग्वाल को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राजकीय अवकाश की घोषणा की है। यह दूसरा मौक़ा होगा जब उत्तराखण्ड में लोकपर्व ईगास (Egas Festival) को लेकर अवकाश घोषित किया गया हो।

इससे पूर्व पिछले वर्ष भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा ईगास बग्वाल (Egas Festival) पर राजकीय अवकाश की घोषणा की गई थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि ईगास बग्वाल उत्तराखण्ड वासियों के लिए एक विशेष स्थान रखती है। यह हमारी लोक संस्कृति का प्रतीक है। हम सब का प्रयास होना चाहिए कि अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपरा को जीवित रखें। नई पीढ़ी हमारी लोक संस्कृति और पारम्परिक त्योहारों से जुङी रहे, ये हमारा उद्देश्य है।

ट्वीट द्वारा यह जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि “आवा! हम सब्बि मिलके इगास मनोला नई पीढ़ी ते अपणी लोक संस्कृति से जुड़ोला। लोकपर्व ‘इगास’ हमारु लोक संस्कृति कु प्रतीक च। ये पर्व तें और खास बनोण का वास्ता ये दिन हमारा राज्य मा छुट्टी रालि, ताकि हम सब्बि ये त्योहार तै अपणा कुटुंब, गौं मा धूमधाम से मने सको । हमारि नई पीढी भी हमारा पारंपरिक त्यौहारों से जुणि रौ, यु हमारु उद्देश्य च।”

Egas Festival

आपको बता दें कि, कार्तिक मास में दीपावली के ग्यारह दिन बाद इगास का पर्व पर्वतीय अंचल में धूमधाम से मनाया जाता है। लोग अपने घरों को दीये की रोशनी से सरोबार करते हैं। घरों में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की विशेष पूजा की जाती है। देवभूमि में इस दौरान भैलो खेलने का रिवाज है जोकि खुशियों को एक दूसरे के साथ बांटने का माध्यम है। इस दिन रक्षा बंधन पर हाथ पर बंधे रक्षासूत्र को बछड़े की पूंछ पर बांधकर मन्नत पूरी होने के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है।

Egas Festival : क्यों मनाई जाती है इगास?

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या लौटे थे, तो लोगों ने अपने घरों में दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन कहा जाता है कि, तब पर्वतीय क्षेत्रों में यह सूचना दीपावली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली, जिससे वहां दीपावली के 11 दिन बाद बूढ़ी दिवाली (इगास) धूमधाम से मनाई जाती है।

इसी पर्व को लेकर एक अन्य मान्यता यह भी है कि वीर माधो सिंह भंडारी की सेना दुश्मनों को परास्त कर दीपावली के 11 दिन बाद जब वापस लौटी तो स्थानीय लोगों ने दिये जलाकर सैनिकों का स्वागत किया।

Igas Festival : भैलो का है विशेष महत्व

ईगास बग्वाल के दिन भैला खेलने का विशेष महत्व है। यह चीड़ की लीसायुक्त लकड़ी से बनाया जाता है। यह लकड़ी बहुत ज्वलनशील होती है। इसे दली या छिल्ला कहा जाता है। जहां चीड़ के जंगल न हों वहां लोग देवदार, भीमल या हींसर की लकड़ी आदि से भी भैलो बनाते हैं। इन लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ रस्सी अथवा जंगली बेलों से बांधा जाता है। फिर इसे जला कर घुमाते हैं। इसे ही भैला खेलना कहा जाता है।

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